अगर मै अच्छा कुआं होता
तो
थके प्यासे लोग
मेरे पास आते
और अपनी जलपात्र में
रस्सी लगाकर
मेरे शीतल जल तक लाते
जलपात्र को जल से टकराकर
मुझे जगाते
और
जलपात्र भरकर
अपनी प्यास बुझाते
अपनी थकान और प्यास बुझाकर
श्वास को अन्दर बाहर कर
धन्यवाद तो दे जाते
लेकिन
गलती ऐसा किया मैंने
हर जलपात्र में लगी रस्सी तोड़ दी मैंने
जल देने के बदले
जलपात्र भी रखली मैंने
लोग तडपते हुए भाग गए मुझे छोड़कर
चले गए दुसरे जलाशय के पास दौड़कर
यही हाल होता रहा क्रमशः
मेरे पानी में हिलकोड़े ना उठा
मै रोज सोता ही रहा
इस हालात के कारन
लग गया कीड़ा मुझमे
गंदगी फ़ैल गयी मेरे पानी में
अब अगर कोई आता भी है
मेरे पानी की गंध को देखकर
थूक कर चले जाते है
काश!
मै लोगो की पीड़ा समझता
लोग मुझसे प्रसन्न हमेशा ही रहता
संजय झा - नागदह
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