Wednesday, 4 September 2013

कल्पना कें कल्पना



सदिखन रहैत छि, कल्पना कें कल्पना में
कखनो याद में
त कखनो ख्याल में
सोचैत छि सुतियो रहि
ओकरे कल्पना में

मोन त करैया दौड़ जाई
कल्पना स उठि क
भेंट क ली सदयह
करू कि ? विडम्बना एहन छै
जकड़ी गेल छि बिना बेडी के
ऐना,
जेना, स्वामी में विरह में
प्रति - पल आरती जकां जरैत
किनको पत्नी अपन पति के भला
ऐना - केना बिसरि जेती
जेना, रात्रि भेला पर सूर्य आकाश सं
विलीन भ जाइत छथि
अवस्था हमर ओहू सं बेसी ख़राब अछि
कारन,
हाल एहन अछि
जेना, अजायब घर में राखल प्रतिमा
ने हिल सकैत छि, ने डोईल
सब किछु समा गेल अछि
कल्पना के कल्पना में ।
संजय कुमार झा "नागदह"
दिनांक: ०३/०९/२०१३
 

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