Tuesday, 10 September 2013

हम्मर विवाहक कार्ड पर लिखल पंक्ति



स्वजनक संग महोत्तम मनबी, परम्परा प्राचीन 

लोक कराय अभिलाषा, फल धरी मात्र इश्वराधीन 

छठिहारे दिन लिखथि विधाता,अटल लेख निर्धारित 

ग्रह नक्षत्रक गणित योग पर, अखिल विश्व संचालित 

पांच मार्च रहत सोम दिन, चैतक कृष्ण द्वितीया 

वधु जयंती वर संजय झा, राघव संग जनु सीया 

सौराठक श्री जीवछ झा, करता पावन कन्यादान 

नागदह्क श्री हेम चन्द्र झा, दशरथ दिया दान 

दूर्वाक्षत दी आविसुदुर्लभ, पठवि प्रेम हकार 

करथि तिरोहित देव विनायक, कालक कुटिल प्रहार 

कुश कन्या प्रतिनिधि गोसाउनिक, विष्णु तुल्य जामाता 

भखियौलान्ही रहस्य सम्पुट केर चतुर्वेद व्यखाता 



Monday, 9 September 2013

SANSKAAR


KRODH AUR BUDDHI



भिखमंगा



सभी यहाँ भिखमंगा है
कोई खुल कर भीख मांगता है
तो कोई छुप कर भीख मांगता है
कोई धामे हाथ कटोरा है
तो कोई धामे बन्दुक गोला है
पर सभी यहाँ भिखमंगा है

कोई भेष भिखाड़ी का पकड़ा है
कोई लंगड़ा तो लुल्हा है
कोई बाबा भेष बनाया है
तो कोई कला धन कमाया है
कोई देश बेच कर खाता है

ये भेष कभी नहीं उतरेगा
ये लोग कभी नहीं सुधरेगा
ये ऐसे ही चलते जायेंगे
चाहे रोज़ कोई पछतायेंगे
ये देश का एक ही नारा है
गर तुम नहीं सुधरोगे
तो , हम भी नहीं सुधरेंगे

ना ओ कभी सुधरेंगे
ना मै कभी सुधरूंगा
इस देश बेच कर खाऊंगा
तब तक कही नहीं जाऊँगा
कोई भिखमंगा नाम भले रख दे
मै रोड पे भीख नहीं मांगूंगा
इस्वर सब कुछ देखता है
मै नहीं तो क्या ?
मेरे बच्चे रोड पे मांगेगे
गर अभी नहीं पछतायेंगे
पर सभी यहाँ भिखमंगा है


संजय कुमार झा  - नागदह   10/09/2013

Thursday, 5 September 2013

दहेज़ प्रथा

  
इस बीमारी का तुम भी
शिकार तो हुई थी
नाना जी के लिए तुम भी
तो भार बनी थी
जरा सोचो तुम
उस समय हाल क्या हुयी थी
नाना नानी का हाल भी
बदहाल तो हुयी थी 
धुप भी यही था
छाव भी यही थी
रास्ते में कंकर भी
अबसे बड़ी थी 
जब आते थे थककर
वो रिश्ता को खोजकर
ना कहते ही आपका
हाल क्या हुई थी 
आप नारी हो
नारी की कीमत तो समझो 
पिताओ की मन की
पीड़ा तो समझो
इस बीमारी को भगाओ माँ
काली तुम बनकर 
मिटादो दहेजो की
लालच को डटकर 
तुम्ही से तो लोगो को
प्रेरणा मिलेगी
दहेज़ की बीमारी
दूर तो भगेगी
बेटी के होने पर
चिंता ना होगी
चारो तरफ
खुशिया ही खुशिया मनेगी 
संजय कुमार झा "नागदह" २५@०५@२०१३ 

Wednesday, 4 September 2013

कल्पना कें कल्पना



सदिखन रहैत छि, कल्पना कें कल्पना में
कखनो याद में
त कखनो ख्याल में
सोचैत छि सुतियो रहि
ओकरे कल्पना में

मोन त करैया दौड़ जाई
कल्पना स उठि क
भेंट क ली सदयह
करू कि ? विडम्बना एहन छै
जकड़ी गेल छि बिना बेडी के
ऐना,
जेना, स्वामी में विरह में
प्रति - पल आरती जकां जरैत
किनको पत्नी अपन पति के भला
ऐना - केना बिसरि जेती
जेना, रात्रि भेला पर सूर्य आकाश सं
विलीन भ जाइत छथि
अवस्था हमर ओहू सं बेसी ख़राब अछि
कारन,
हाल एहन अछि
जेना, अजायब घर में राखल प्रतिमा
ने हिल सकैत छि, ने डोईल
सब किछु समा गेल अछि
कल्पना के कल्पना में ।
संजय कुमार झा "नागदह"
दिनांक: ०३/०९/२०१३
 

Tuesday, 3 September 2013

ककरा कहबई के सुनतै सब लागई बहिर अकान सन


ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन
आब बुझैया भारतक हालत, भ गेल छै कंगाल सन
चुनाव लड़ई लेल ठाढो होई छै, सबटा चोर उच्चका सन
ककरा राखु, ककरा छोरु, विधिना भ गेल वाम सन
मोन त होईया, तेना हटाबी, मडुआ सन किछु पटुआ सन
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन

स्वतंत्रत भेला पर देश ख़ुशी भेल, ख़ुशी होयते फेर दुखी भेल
नहि बितल किछुओ दिन, देश दू भाग तत्क्षण बटी गेल
बटिते देरी खून खारापा, कतेक मरि गेल कतेक कटी गेल
ख़ुशी के आँशु दुखी में बटी गेल, कतेक घर के नामोनिशान जे मिटी गेल
देश के किछु भागक हालत, भ गेल छल श्मशान सन
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन

माछ भात के बात त छोडू, सागक नै अछि कोनो जोगार
देशक हालत एहन अछि केने, मंहगी चढ़ल अछि बीचे कपार
बाज़ार आ हाटक नामे सुनि क, पकडैत छि अपन कपार
नेता आ राजनेता सब के, नै छनि किनको एकर विचार
इ सब सोची माथ काज नै करैया, भ गेल छि सुन्न अकान सन 
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन

पहिले जे छल देशक हितगर, नाम ओकर छल सेनानी
आब कियो छथि एही तरहक ? जकर होई कियो दीवानी
हिनकर सबहक हालत देखि क, मोन करैया खूब कानी
अपना लेल इ सब खूब कमेला, जनता चाहे भरै पानी
आब कहु मोन केहन लगैया ? लगैया उजरल बांग सन
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन
संजय कुमार झा "नागदह"

दिनांक : ०४/०९/२०१३

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